$ 0 0 कितनी हीउलझनों सेघिरी हुई हो तुम...कितनी ही उलझनेंमुझको भी घेरे है...फिर भीएक दूसरे के लिएहम बिलकुल अपने है...ये आने जाने का किस्सा हैजन्मों के ये फेरे हैं...तुम्हारे लियेतुम्हारी खातिर...सब सह लेने का ज़ज्बा हैसब झेल जाने का हौसला है... जिजीविषा ज़िन्दगी की खातिर...सदैव लड़ती है विषमताओं से, कौन झुठला पायेगा उसे...? जो नियति का अटल फैसला है...!!