झिलमिल आँखों की नमी
नम करती रही मन प्राण अंतर
जीवन चलता रहा समानांतर...!
दुःख की रागिनी गाती रही
सुख के स्वप्न दिखाती रही
"एक ही सिक्के के दो पहलू हैं"-
सुख दुःख की आवाजाही
बस मन को यूँ बहलाती रही...!
सुख हो या कि दुःख
दोनों में से कोई भी टिकता नहीं है...
दोनों में...
तत्वतः कहाँ कोई अंतर...
हर हाल में
चलता रहा है...
चलता रहता है...
चलता ही रहेगा जीवन समानांतर...
बस कुछ नमी हो...
जो नम करती रहे मन प्राण अंतर...!!!