$ 0 0 आँखों में आयाआकर रुक गया...आंसू तुम जैसा था क्या ?ढलकते ढलकते चूक गया...!अब भी अटका हैपलकों पर...औरमुस्कुरा रहा है...उदास सी हैकोई रागिनी...वही वो कतरागा रहा है...सुन सुन करविभोर हूँ...मैं रात्रि का अन्धकार हूँमैं ही खिली हुई भोर हूँ...ये समय ही हैजो हमें तराशता है...हम कुछ नहीं हैंबुलबुलों का कहाँ आयुष्य से लम्बा वास्ता है... आज हैंकल नहीं रहेंगे...तब भी तुम्हें हमअपना कहेंगे...अवलंब के अभाव मेंनहीं टिक सकती ज़िन्दगी की छत...क्षमा हो,सौहार्द हो... प्रेम यथावत रहेभले कितना भी हो जायें क्षत विक्षत...नत हैं हमेशा सेतेरे आगे श्रद्धा से सर झुक गया...रूठ गए जो तुम तो देखो"जीवन"जीवन होते होते रूक गया...!लौट आओ...बन कर सूरज... भोर... हवा... बारिशमेरे आकाश का "काश..."अपनी सार्थकता जाहिर करते करते जाने क्यूँ चूक गया...खोया सा जान पड़ा अवलंबहाँ! "जीवन"जीवन होते होते रूक गया... ... ... !!