Quantcast
Channel: अनुशील
Viewing all articles
Browse latest Browse all 670

अवलंब...!

$
0
0

आँखों में आया
आकर रुक गया...
आंसू तुम जैसा था क्या ?
ढलकते ढलकते चूक गया...!


अब भी अटका है
पलकों पर...
और
मुस्कुरा रहा है...


उदास सी है
कोई रागिनी...
वही वो कतरा
गा रहा है...


सुन सुन कर
विभोर हूँ...
मैं रात्रि का अन्धकार हूँ
मैं ही खिली हुई भोर हूँ...


ये समय ही है
जो हमें तराशता है...
हम कुछ नहीं हैं
बुलबुलों का कहाँ आयुष्य से लम्बा वास्ता है... 



आज हैं
कल नहीं रहेंगे...
तब भी तुम्हें हम
अपना कहेंगे...

अवलंब के अभाव में
नहीं टिक सकती ज़िन्दगी की छत...
क्षमा हो,सौहार्द हो... प्रेम यथावत रहे
भले कितना भी हो जायें क्षत विक्षत...


नत हैं हमेशा से
तेरे आगे श्रद्धा से सर झुक गया...
रूठ गए जो तुम तो देखो
"जीवन"जीवन होते होते रूक गया...!

लौट आओ...
बन कर सूरज... भोर... हवा... बारिश
मेरे आकाश का "काश..."
अपनी सार्थकता जाहिर करते करते जाने क्यूँ चूक गया...

खोया सा जान पड़ा अवलंब
हाँ! "जीवन"जीवन होते होते रूक गया... ... ... !!



Viewing all articles
Browse latest Browse all 670

Trending Articles



<script src="https://jsc.adskeeper.com/r/s/rssing.com.1596347.js" async> </script>