चलो ऐसा करें
साथ चलें...
इन हवाओं में बिखरे
जो संदेशें हैं,
उन्हें
एक एक कर बांचें...
और उनसे जुड़ते चले जाएँ...
चलो ऐसा करें
शाम ढले...
ढलते सूरज को
एकटक देखें,
गढ़ें
मन ही मन सुकून...
और उसमें डूबते चले जाएँ...
चलो ऐसा करें
साथ चलें...
कोहरे में जो उदासी है
उसमें कतरा कतरा सिमटते हुए,
समेटें
वहीँ से ख़ुशी का कोई राग...
और उससे जुड़ते चले जाएँ...
कि
जुड़ना
हमारी नियति है...
सहज प्रकृति है...
ज़िन्दगी! तू हर बार जीतती है...
तू हमेशा ही जीती है
तेरी मुझसे... मेरी तुझसे
अनन्य प्रीती है...!