हे जीवन!
तुमने कह लिया...
अब सुनो हमसे...
जो तुम
अब कह पाये शब्दों में,
वह हमें
पहले से ज्ञात है...
तुम्हें क्या लगता है
कोई रहस्योद्घाटन किया है तुमने...?
बंधू, तुम भले न रहे हो साथ रह कर भी साथ
पर फिर भी कुछ है जो सदा से साथ है...!
ये हमेशा यूँ ही बना रहे...
स्नेह से घर आँगन हरा रहे...
जितने फूल खिले
तुम्हारी हंसी की धूप में...
उन सबमें देखा हमने वही ईश्वर
दिव्य स्वरुप में...
वही ईश्वर...
शब्द ब्रह्म बन कर...
तुझको मुझको जोड़े है,
वही नियति है...
जो जाने कहाँ से...
कौन सी राह मोड़े है...!
इस राह पर
चलते चलते...
मिल जाते हैं मन,
स्नेह सदा-सर्वदा
बना रहे...
कि इससे ही हम हैं हम!
और बढ़ता रहे
तुम्हारा प्रताप...
धवल रहे कीर्ति तुम्हारी...
ज़िन्दगी हमेशा से ही है एक पहेली
इसे सुलझाएगी
इसके प्रति अनन्य प्रीती हमारी...!!!
***
हम जितना उसे मानते हैं... उसे चाहते हैं... वह भी हमें उतना ही चाहती है... कभी कहती नहीं... पर न कह कर भी यही तो कहती रहती है वो... दोहराती जाती है वो... हमेशा... बस ज़रा सा टटोलना भर है... हमारे साथ ही है, हमारे पास ही है ज़िन्दगी... कई कई रूपों में हंसती हुई... गाती हुई... गुनगुनाती हुई... हंसी और आंसुओं के बीच जूझती हुई... और जीतती हुई... हर बार... बार बार...!हे ज़िन्दगी, शब्दों में नहीं हो सकता व्यक्त तुम्हारे स्नेह का आभार... पर शब्द के अलावा है ही क्या हमारे पास...
तो जो है वही तुम्हें अर्पण... हे! जीवन... ... ...
तो जो है वही तुम्हें अर्पण... हे! जीवन... ... ...