उदास हैं
सोच रहे हैं
यूँ ही...
क्या केवल
हमको ही
फ़िक्र लगी रहती है...?
सब तक पहुँचने की...
या
कोई ऐसा भी है...?
जिसे
मेरी फ़िक्र हो
जो मेरा हाल जानना चाहे...??
लगता है-
अपने आप को
रख कर कहीं
भूल जायें...
खो जायें...
मौन हो जायें...
कहीं न पहुंचना हो...
न किसी तक...
न कहीं पर...
न दस्तक दें कहीं...
न किसी आहट की उम्मीद लगायें...
बस खो जाएँ...
मौन हो जाएँ...!!!
***
कितनी ही बार आता है न ऐसा मन में... हम सब के मन में... कभी न कभी... पर फिर भी हम मौन से कोसों दूर रहते हैं... उलझे रहते हैं अन्यान्य उलझनों में...
काश! पकड़ पाते मौन का कोई सिरा तो जान लेते हम कि कोई हो न हो हमारा विश्वास... हमारा ईश्वर... हमेशा हमारे साथ ही तो होता है... और इन्हें हमसे कोई दूर भी नहीं कर सकता...
और जिन्हें मन ने बाँध लिया अपने आप में निहित विश्वास से... वो भी दूर होकर कभी दूर नहीं होते... नहीं हो सकते...!!!