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Channel: अनुशील
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कविता के पास...!

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मेरे आसपास
नहीं होता कोई
जो सुने
मेरी बातें...
समझे मेरी उलझनें...


मेरे डर को
पुरुषार्थ में बदल दे...
ऐसी कोई सम्भावना नहीं नज़र आती
जो आश्वस्त करे
हँसते गाते पल दे... 


जाने क्या दोहराती है
आती जाती सांस...
निराश हताश मन से
छिन जाता है धरती और आकाश...


ऐसे में मैं
लिखती हूँ शब्द
शब्दों में तराशती हूँ अर्थ
और फिर कोई रंग लेकर इन्द्रधनुष से
रंग देती हूँ स्याह से मंज़र 


अँधेरा बढ़ता ही रहता है लिए हाथ में खंजर 


तब शब्दों में पिरो कर खुद को
राह बनाती हूँ...
नहीं पहुँच पाती तुम तक
शब्द सेतु निर्मित करती जाती हूँ...


ये सेतु तुमसे मुझको जोड़ेंगे
यही हमारा मौन तोड़ेंगे 


बनी रहे
ये आस...
भले न हो समाधान कोई
पर जिलाए जाने की
संजीवनी
तो है ही न
कविता के पास...!!


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