$ 0 0 आवाज़ दे रहे हैं हमपर खामोश है गगनजाने क्या कारण है...दूरी बहुत है...?या बीच में है शून्य...?जिससे हो करनहीं गुजरती कोई आवाज़... नहीं पहुँचते मेरे स्वर वहाँ तक...?या अनसुनी कर दी जाती है पुकार...?क्या पता...बहती ही जाती है क्यूँआंसुओं की धार...! पहुँचने की कोशिश मेंबहुत चले...बहुत थके... चूर हुए...अपने आप से ही कई बार दूर हुए...फिर ज़रा संभले... दृढ़ किया टुकड़ा टुकड़ा मन...समझाते रहे अपने आप को ही हम- कि,बस जरा सा सफ़र और शेष है...थोड़ा सा धैर्य और फिर संतुष्टि अशेष है...! यूँ ही खुद से करते हुए संवादखुद को ही देते हुए दिलासानिरंतर बढे जा रहे हैं हमहे दुष्प्राप्य मंजिल!तुम तक चल कर आ रहे हैं हम...!!!