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Channel: अनुशील
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तुम तक...!

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आवाज़ दे रहे हैं हम
पर खामोश है गगन
जाने क्या कारण है...
दूरी बहुत है...?
या बीच में है शून्य...?
जिससे हो कर
नहीं गुजरती कोई आवाज़... 


नहीं पहुँचते मेरे स्वर वहाँ तक...?
या अनसुनी कर दी जाती है पुकार...?
क्या पता...
बहती ही जाती है क्यूँ
आंसुओं की धार...!  


पहुँचने की कोशिश में
बहुत चले...
बहुत थके... चूर हुए...
अपने आप से ही कई बार दूर हुए...


फिर ज़रा संभले... 


दृढ़ किया टुकड़ा टुकड़ा मन...
समझाते रहे अपने आप को ही हम- 


कि,
बस जरा सा सफ़र और शेष है...
थोड़ा सा धैर्य और फिर संतुष्टि अशेष है...! 


यूँ ही खुद से करते हुए संवाद
खुद को ही देते हुए दिलासा
निरंतर बढे जा रहे हैं हम
हे दुष्प्राप्य मंजिल!
तुम तक चल कर आ रहे हैं हम...!!!




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