प्रतिभा... मेरी प्रिय दोस्त... मेरी रूम मेट... उन दिनों की दोस्त जब हम रोते हुए बनारस आये थे और साल भर रोते ही रहे, घर लौट जाने की जिद लिए...! तब हमें झेलने वाली... समझाने वाली... सँभालने वाली... प्यारी रूम मेट... प्यारी दोस्त...!
वो दिन बीत गए, फिर और पांच वर्ष गुजर गए... दूर हो गए हम, बनारस भी छूट गया... पर आज जब बात हुई तो लगा जैसे वही कीर्ति कुञ्ज हॉस्टल हो, और वही हम हों... २००१ में जैसे थे वैसे ही... न समय बदला हो... न हम... सच, कुछ बातें कभी नहीं बदलती... हम भी नहीं बदलेंगे कभी... है न प्रतिभा...?
तुम एक ही थी...
तुम एक ही हो...
वो दिन बीत गए, फिर और पांच वर्ष गुजर गए... दूर हो गए हम, बनारस भी छूट गया... पर आज जब बात हुई तो लगा जैसे वही कीर्ति कुञ्ज हॉस्टल हो, और वही हम हों... २००१ में जैसे थे वैसे ही... न समय बदला हो... न हम...