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Channel: अनुशील
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संदेशे धरती के नाम!

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कभी कभी...
सारा दिन
एक सा ही होता है


घिर आने वाली शाम की तरह ही
उदास...! 


बादलों से पटा
समूचा अम्बर...
सूरज का कहीं कोई
अता पता नहीं...
एक अजीब से अँधेरे में घिरी सुबह 


जाने कैसी तो सुबह...!


सुबह का नहीं कोई रंग...
यह सुबह उकेरना भी चाहें
तो नहीं उतरती कागज़ पर
नहीं तो हो लेते स्याही के संग
हा! सुबह कितनी है बेरंग...!



कि तभी अम्बर ने
भेजी धरा के नाम
कुछ सफ़ेद रुई के फ़ाहे सी फुहार...
एक उजली चादर ने ढक लिया
सूखे पत्तों का अम्बार...



अब ये इस मौसम की पहली पहली उजली बारिश
सब ढक लेगी...
मन रखती आई है प्रकृति
हमारा मन रख लेगी...


सब रंग घुल जाएँ तो
श्वेत होता है परिणाम
सारे रंग घोल भेज रहा है अम्बर
संदेशे धरती के नाम!


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