$ 0 0 कभी कभी...सारा दिनएक सा ही होता है घिर आने वाली शाम की तरह हीउदास...! बादलों से पटासमूचा अम्बर...सूरज का कहीं कोईअता पता नहीं...एक अजीब से अँधेरे में घिरी सुबह जाने कैसी तो सुबह...!सुबह का नहीं कोई रंग...यह सुबह उकेरना भी चाहेंतो नहीं उतरती कागज़ परनहीं तो हो लेते स्याही के संगहा! सुबह कितनी है बेरंग...!कि तभी अम्बर नेभेजी धरा के नामकुछ सफ़ेद रुई के फ़ाहे सी फुहार...एक उजली चादर ने ढक लियासूखे पत्तों का अम्बार...अब ये इस मौसम की पहली पहली उजली बारिशसब ढक लेगी...मन रखती आई है प्रकृतिहमारा मन रख लेगी...सब रंग घुल जाएँ तोश्वेत होता है परिणामसारे रंग घोल भेज रहा है अम्बरसंदेशे धरती के नाम!