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Channel: अनुशील
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हमने तुम्हें चुन लिया...!

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रात भर
जलता रहा
दिया...
जीवन का होना
व्यर्थ नहीं गया...
हम देखते रहे
टिमटिमाती लौ
एकटक,
जागी आँखों ने
जागे जागे
सपना बुन लिया... 


आँखों ने हृदय का
जाने कौन सा भाव
पढ़ लिया...
अश्रूकणों का एक पारावार
हवा में तैर गया...
हम विस्मित से
देखते ही रह गए
निर्निमेष,
जाने किसने
मूक आंसुओं का
कहा सुन लिया... 


सब नियति के खेल हैं
हमने भला
क्या कब किया...
निमित्त मात्र हैं
राहों पर बस निष्ठा से चल लिया...
मार्ग में कितनी ही बार बिखरा मन
ये क्रम कभी नहीं
है होना शेष,
हताश रुके कुछ पल
कोई था नहीं, कौन चुनता?
खुद ही हमने अपना बिखरा मन चुन लिया... 



रात भर
जलता रहा
दिया...
जागी आँखों ने
लौ को पल पल जिया...
रौशनी
तम से लड़ती रही
देर तक,
इसी आस्था की डोर को
अपने सपनो संग
हमने धीरे धीरे बुन लिया...


"तम"और "तुम"में एक को चुनना था...

रौशनी! हमने तुम्हें चुन लिया...!


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