$ 0 0 अपरिचय... परिचय... अपरिचयमृत्यु... जीवन... मृत्यु यही कथा है...इतनी ही व्यथा है! जीवन का चक्रअपरिचय के दौर सेपरिचय की सीमा पररखता है कदम... अपने हो जाते हैं सपनेऔर फिर देखते ही देखते सपना हो जाता हैअपनों का साथहोने लगती हैं आँखें नम...परिचय की सीमा को छूकरफिर अपरिचय की परिधि मेंघिरने लगते हैं हमघेरने लगता है प्रकाश को तम...अपरिचय... परिचय... अपरिचयमृत्यु... जीवन... मृत्यु यही कथा है...इतनी ही व्यथा है! अप्रकट और पुनःएक अंतराल के बाद अप्रकटदो अप्रकट के बीच जो अंतराल हैबस उतना ही है जीवन...क्षणिक है जो उसके खो जाने परकैसा कष्ट कैसा दुःखआत्मा अभेद्य हैबस यह सत्य रहे स्मरण...जो ज़रा सा समय हमारे हिस्से हैवो जी भर कर जीए हमसत्कर्म और भक्ति भाव का दीप जलेकि मृत्यु के बाद भी जीता है जीवन...यही कथा हैजीवन अंततः तेरी मेरी साझी व्यथा है...!!!