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Channel: अनुशील
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साझी व्यथा...!

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अपरिचय... परिचय... अपरिचय
मृत्यु... जीवन... मृत्यु 


यही कथा है...
इतनी ही व्यथा है! 


जीवन का चक्र
अपरिचय के दौर से
परिचय की सीमा पर
रखता है कदम... 


अपने हो जाते हैं सपने
और फिर देखते ही देखते सपना हो जाता है
अपनों का साथ
होने लगती हैं आँखें नम...


परिचय की सीमा को छूकर
फिर अपरिचय की परिधि में
घिरने लगते हैं हम
घेरने लगता है प्रकाश को तम...


अपरिचय... परिचय... अपरिचय
मृत्यु... जीवन... मृत्यु 


यही कथा है...
इतनी ही व्यथा है! 


अप्रकट और पुनः
एक अंतराल के बाद अप्रकट
दो अप्रकट के बीच जो अंतराल है
बस उतना ही है जीवन...


क्षणिक है जो उसके खो जाने पर
कैसा कष्ट कैसा दुःख
आत्मा अभेद्य है
बस यह सत्य रहे स्मरण...


जो ज़रा सा समय हमारे हिस्से है
वो जी भर कर जीए हम
सत्कर्म और भक्ति भाव का दीप जले
कि मृत्यु के बाद भी जीता है जीवन...


यही कथा है
जीवन अंततः तेरी मेरी साझी व्यथा है...!!!



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