कितनी ही बार ऐसा होता होगा...
हंसती हुई डगर पर मन रोता होगा...
मन की अपनी दुनिया है
उसके अपने किस्से हैं...
उसकी अपनी कहानियां है,
वह अपनी मर्जी से
गम के प्याले पीता होगा
कितनी ही बार ऐसा होता होगा...!
संसार के अपने तौर तरीके हैं
मन का संसार निराला है...
कहीं कुछ गहरे तो कहीं रंग कुछ फीके हैं,
उन रंगों में इंतज़ार का अनूठा रंग
बरबस जीता होगा
कितनी ही बार ऐसा होता होगा...!
फूलों का मुरझाना औ'पुनः खिलना
हारे थके मुरझाये हुए मन को जैसे...
साक्षात किसी ज्योत का मिलना
कितने तार-तार अरमानों को वह फिर
अनगढ़ प्रयास से सीता होगा
कितनी ही बार ऐसा होता होगा...!
हंसती हुई डगर पर मन रोता होगा...
कितनी ही बार ऐसा होता होगा...