शाम को अकेले बैठे हुए लिख गया यह मन एवं वातावरण का परिदृश्य... सुबह से बारिश हो रही है, मौसम जैसे बदल सा गया है... २० डीग्री से पुनः ५-६ डीग्री पर लौट आया है तापमान यहाँ स्टॉकहोम में...; मन का क्या... उसका मौसम तो नित परिवर्तित होता ही रहता है...
अभी बूँद-बूँद बरस रहा है अम्बर
ऐसे में निर्जन अकेला होगा वहाँ समंदर
यहाँ अकेले हैं हम और देख रहें हैं हर एक बूँद की गति
एक क्षण की कथा और फिर निश्चित है क्षति
खिड़की से झाँक रही हैं आँखें मेरी उदासीन
ये रोता हुआ अम्बर ये शाम है ग़मगीन
कम्पित हो रहा है गमले के पौधे का हरापन
हवा ने सहलाया धीरे से लिए हुए अपनापन
कुछ बूँदें पत्तों पर लगीं झिलमिलाने
थाहा हमने अपना अंतर बारिश के बहाने
भीतर कुछ घुले-मिले से रंग पाए
मौन नयनों से हमने नीर बहाए
फिर कुछ ही पल में जाती रही उदासी
कोई बड़ा सन्दर्भ नहीं... है बात ये ज़रा सी
अभी बूँद-बूँद बरस रहा है अम्बर
ऐसे में निर्जन अकेला होगा वहाँ समंदर
यहाँ अकेले हैं हम और देख रहें हैं हर एक बूँद की गति
एक क्षण की कथा और फिर निश्चित है क्षति
खिड़की से झाँक रही हैं आँखें मेरी उदासीन
ये रोता हुआ अम्बर ये शाम है ग़मगीन
कम्पित हो रहा है गमले के पौधे का हरापन
हवा ने सहलाया धीरे से लिए हुए अपनापन
कुछ बूँदें पत्तों पर लगीं झिलमिलाने
थाहा हमने अपना अंतर बारिश के बहाने
भीतर कुछ घुले-मिले से रंग पाए
मौन नयनों से हमने नीर बहाए
फिर कुछ ही पल में जाती रही उदासी
कोई बड़ा सन्दर्भ नहीं... है बात ये ज़रा सी