$ 0 0 डूबता रहा मनभींगता रहा मनहर बारबार-बारज़िन्दगी की थाह में!यूँ हीउठते-गिरते चलते रहे हमकभी मुस्कान लिए आँखों मेंकभी लिए हुए आँखें नमपथरीली जीवन राह में!रिश्तेऔर रास्तों केसारे समीकरणसिमट आयेअपनी एक कराह में!