$ 0 0 सब रस्मेंनिबाही जातीं हैक्या स्याह क्या सुफ़ेदधरा पर प्रतिपल नयी-सी सुबहें आतीं हैंबादल अपने दल-बल संगनित रूप नया धरते हैंधरा के आँचल मेंहरी धारियों की सौभाग्यशाली उपस्थिति होइस ध्येय हेतु वे कितने करतब करते हैंरात बीतती है, बीतेअब सुबह आएधरती निर्द्वंद, अपने हरेपन के, गीत गाए!