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सन्नाटा सा पसरा है

ज़िन्दगी से
उठापटक जारी है
साँस लेना भी
जैसे भारी है


संशयों के झुरमुट में
लम्हें बीत रहे हैं
हम बूँद-बूँद
पात्र से रीत रहे हैं 


अपना आप ही
खुद से खो रहा है
आँखें निस्तेज़ बेसुध पड़ी हैं
मन फूट-फूट कर रो रहा है 


शोर भरे जीवन में
सन्नाटा सा पसरा है
संवाद बचे नहीं किसकी ओर देखें
अब बस अपना ही आसरा है 


जो ओझल हो गयी
वो ज्योत हमारा सर्वस्व थी
ओझल हो मन-प्राण अँधेरा कर गयी 


इस रीतेपन में कैसे
अपना बिखराव समेटें
एकाकी मन को वह गमगीन बयार और अकेला कर गयी !


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