$ 0 0 बुरे सपने सेउचटी रात की नींदगवाह है अंधेरों की वह असमय जागनारात से सुबह के फासले कोऔर बड़ा करता है उस शून्य मेंघड़ी की टिक-टिक साफ़ सुनाई देती हैहर टिक-टिक के साथ बीतते हुए भीसमय जैसे ठहरा-सा होता है इस ठहराव मेंउद्विग्नता हैअँधेरे हैं रात से सुबह तक की यात्राअंतहीन सी लगती हैनींद जिस दहलीज़ तक स्वतः पहुंचा देती हैजागती आँखों को वही यात्रा कितना तो ग़मगीन करती है पल-पल की टीसउनींदी आँखों में जागती हैरात से सुबह तक का सफ़रफिर वह भयावह अंधेरों में नापती है यथासमयसुबह होती है.