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Channel: अनुशील
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यथासमय सुबह होती है

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बुरे सपने से
उचटी रात की नींद
गवाह है अंधेरों की 


वह असमय जागना
रात से सुबह के फासले को
और बड़ा करता है 


उस शून्य में
घड़ी की टिक-टिक साफ़ सुनाई देती है
हर टिक-टिक के साथ बीतते हुए भी
समय जैसे ठहरा-सा होता है 


इस ठहराव में
उद्विग्नता है
अँधेरे हैं 


रात से सुबह तक की यात्रा
अंतहीन सी लगती है
नींद जिस दहलीज़ तक स्वतः पहुंचा देती है
जागती आँखों को वही यात्रा कितना तो ग़मगीन करती है 


पल-पल की टीस
उनींदी आँखों में जागती है
रात से सुबह तक का सफ़र
फिर वह भयावह अंधेरों में नापती है 


यथासमय
सुबह होती है.


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