$ 0 0 स्मरणअनुभूतियों कावृहद् संसार रचता है जीवन स्वयंयादों की ही तो मरूभूमि हैउड़ते रजकण आँखों में समाधुंधला कर देते हैं दृश्यवर्तमान ओझल सा हो जाता है इस बीचस्मृतियों का पूरा बियाबानभीतर रच जाता हैइंसानवर्तमान और अतीत के बीचटुकड़ों में बच जाता है जल की संकल्पनायेंरेगिस्तान की आत्मा का संगीत हैस्मृतियों के बियाबान मेंकभी स्मिति तो कभी आँसुओं का गीत है रजकणों का सानिध्यसमुद्र की याद दिलाता हैयादों की मरूभूमि में भीजैसे सागर सा ही खारापन लहराता है न कोई ओर न छोरकई बार यादों की पसरी हुई मरूभूमि हीहोती है जीवन का इकलौता ठौर !