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Channel: अनुशील
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यादों की मरूभूमि

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स्मरण
अनुभूतियों का
वृहद् संसार रचता है 


जीवन स्वयं
यादों की ही तो मरूभूमि है
उड़ते रजकण
आँखों में समा
धुंधला कर देते हैं दृश्य


वर्तमान ओझल सा हो जाता है 


इस बीच
स्मृतियों का पूरा बियाबान
भीतर रच जाता है
इंसान
वर्तमान और अतीत के बीच
टुकड़ों में बच जाता है 


जल की संकल्पनायें
रेगिस्तान की आत्मा का संगीत है
स्मृतियों के बियाबान में
कभी स्मिति तो कभी आँसुओं का गीत है 


रजकणों का सानिध्य
समुद्र की याद दिलाता है
यादों की मरूभूमि में भी
जैसे सागर सा ही खारापन लहराता है 


न कोई ओर न छोर


कई बार
यादों की पसरी हुई मरूभूमि ही
होती है जीवन का इकलौता ठौर !







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