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Channel: अनुशील
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दिसम्बर और आश्वस्तियाँ

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कितने छल
कितने ही कल से गुजरते हुए 


पहुँचते हैं हम दिसम्बर की दहलीज़ पर 


ठिठुरता हुआ दिसम्बर
ढ़ेरों बीते कल
और अनगिन रीते पलों का हिसाब करता हुआ
खुद ही रीत जाता है 


वो भी बीत जाता है.


बीतते हुए
वो हमें थमा जाता है
आगे के लिए कुछ नए संकल्प
कुछ मौन आश्वस्तियाँ 


और स्मृतियों का समूचा संसार--


जितनी कड़वाहटें हमने पी हैं
जितनी टूटन हमने सी है 


जितने आँसू रोये हैं
जितनी मुस्कुराहटों के बीज बोये हैं 


वो सारे विम्ब 

साथ रह जाने हैं 


समय के प्रवाह में 

लम्हें सारे बह जाने हैं !



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