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Channel: अनुशील
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छली ज़िन्दगी

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छली ज़िन्दगी
छल कर चली ज़िन्दगी 


छल से आहत
छलके कुछ आँसू 


उन आँसुओं में पली ज़िन्दगी. 


उसकी प्रवंचनाओं को
झेला जा सके
उसके छद्मों के बावजूद
जिया जा सके 


इसलिए ही तो
ढंके-छुपे धैर्य को
अनावृत करती चली ज़िन्दगी. 


कई बार
यूँ भी हुआ 


बहती नदिया के किनारे
निश्चेष्ट थमी हुई
बहुत खली ज़िन्दगी. 


छलती भी है
संग-संग चलती भी है 


वही है
जो सकल प्रवंचनाओं से
उबरने का ढाढस भी है 


साक्षात वो साहस ही है 


कि


पल-पल छलती है
और फिर स्वयं सामने से आकर
हाथ भी थाम लेती है
भली ज़िन्दगी !!


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