आधी रात बीत जाने पर
सुबह से कुछ दूर
पहर एक
ठिठका खड़ा था
टप-टप बूँदों की झड़ी लगी थी
वो उसमें भींग रहा था
खिड़की से झाँकती
एक जोड़ी आँखों ने
बीतता हुआ एक अध्याय देखा
नीरव अन्धकार के पार
गिरती बूंदों के संगीत में
जीवन का ही पर्याय देखा
वो पहर
अकेला ही क्यूँ भींगता?
साथ हो लिए
नमी के अनगिन टुकड़ों को आत्मसात कर
उस अँधेरे में हम प्रात हो लिए.
***
अनूदित होने का सौभाग्य पाकर रचना धन्य हुई.
भरखर रात के बितला पर
भोर से कुछुवे दूर
पहर एकटा
ठिठकी खाड़ो छेलै
झड़ोखा से झांकते
एक जोड़ी आंखीं
अलोपित होते अध्याय देखलकै
खामोश अन्हरिया के पार
गिरते बुन्नी कैरो संगीत में
जिनगिये रो पर्याय देखलकै
हौ पहर
असकल्ले कैन्हें भींगे ?
साथ होय गेलियै
नमी रो अनगिन टुकड़ा समेटी
ऊ अन्हरिया में हम्मे
हासिल होय गेलियै ।
--अंगिका में अनुवाद :: डॉ अमरेन्द्र--