$ 0 0 हृदयचीखना चाहता हैफूट-फूट कररोना चाहता है ऐसी सहूलियतें कहाँजीवन की कँटीली राह मेंकि रुक कररो लिया जा सकेसब कुछ स्थगित करअपना हो लिया जा सके जीवन की निरीहतासालती हैकैसे-कैसे तो साँचों में पीड़ा खुद को ढ़ालती है एक साँस के बाद दूसरी आ सकेइसे संभव करने कोटूटे मन से हीटूटे मन कोकलम लिखने लगती है कविता सुनाई पड़ती हैवो धुंधली आँखों कोदिखने लगती हैस्थगित हो जाता है गति का सत्यविराम की पीड़ा बेध जाती है उस विकटता मेंकविता स्नेहिल रूदन बन आँखों से बरस जाती है किअवश्यम्भावी होकर भीचीख नहीं निकलती वो वहीँ दबी हैहृदय की मिट्टी में दरअसलटूटे-फूटे शब्द येउसी चीख का परिवर्तित रूप हैं कवितामृत्यु के से बर्फ़ीले फैलाव परझुरमुटों से होकर पड़तीअजानी धूप है.