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Channel: अनुशील
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यात्रा के आयाम

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यात्रा के
उस मोड़ पर
पंछी थे, पानी था, गहराई थी



हम
होकर भी कहीं नहीं थे
ये भी एक सच्चाई थी


आँखों का पानी
आँखों में झिलमिल कर
बरस जाता था


एक वो भी क्षण आया

कभी न कभी
आता ही है 


जब नयनों का कोर
उन बूंदों को
तरस जाता था 


यूँ ही
यात्रा के आयाम
तलाशते है 


कभी हम
जीवन को तरसते हैं
कभी उसे तराशते हैं !!


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