$ 0 0 जीवन को देखने केकितने-कितने कोण हैं इस जहां मेंकिसका, कितना, कौन है ये सब थाहने की बातें थोड़े ही हैं किसी एक कोण सेजो एक झलक दिख जाए ज़िन्दगी कीतो जीवन तर जाता है कोई किसी का नहींहर पत्ता एक रोज़ शाख से झर जाता है अडिगकितना भी होविश्वास या कि आस ही,थपेड़ों की मार ही ऐसी हैएक रोज़ आस-विश्वास का हर पौधामुरझा जाता है, मर जाता है !!