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Channel: अनुशील
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कुछ कतरनें :: बियाबान में चलते-चलते

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ऐसे कैसे सीधी सरल रहती,
वक्र हो गयी,
ये खुद से ही है हारी दुनिया



गलती हमारी ही होगी,
जाने क्या हुआ,
रहने लायक रही नहीं हमारी दुनिया !!


***


जिसकी
खो गयी हो चाभी,
वो ताले रो गए


रिश्तों के बियाबान में चलते-चलते,
पाँव में ही नहीं,
मन में भी छाले हो गए !!


***


'तुम'की महिमा अपूर्व
'तुम'स्वयं माधुर्य !!


***


ये अप्रतिम दृश्य,
कई बार
नज़रों से गुज़र चुका है


विस्तृत गगन,
स्नेहिल धरा की ओर,
युगों-युगों से झुका है !!


***


एक गुज़रता है तूफ़ान,
तो कई और,
आ जाते हैं


उनका सामना करते,
छलनी-छलनी,
हम सीने हैं फ़क़त !!


***


अभी जो बैठ गयी है,
थक कर,
तो क्या हुआ


ये आस की नैया,
अहर्निश,
चली बहुत है !


समय
एक सा
कहाँ रहा है कभी



बीतते हुए,
जता जाती हैं खुशियाँ,
कि वे छली बहुत हैं !!


***


आद्यान्त
आंसू ही हैं बहते


इसे दुनिया
यूँ ही नहीं कहते !!



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