$ 0 0 तुमसेकविता कहते थे...तुमकोकविता कहते थे...हमेंकब रहीअपनी खबर...जहाँ के हैं नहींवहीँ तो कबसे रहते थे...ठेस ठोकरअपने साथी हैं...चोटिल होकर भीहम नदिया सा बहते थे...विशुद्ध भाव की गंगा लेअपनी नन्ही लोटकीधन्य किये रहते थे...हाँ!तुम सेकविता कहते थे...तुम कोकविता कहते थे... !!--- --- ---अब भी वही हैं...अब भी वहीं है...भूली बिसरी गलियों में हम...छूट गयी कविताओं के संस्कार समेटते रहते हैं... !!