$ 0 0 ईश्वर देते हैं,सबको सहज व्यक्तित्व...हर कोईअपनी सहज अभिव्यक्ति दे --तो अच्छा है.प्रतिभा प्रदर्शन के नाम पर,स्वभाव का त्याग प्रयत्न पूर्वक,दूसरे की तरह बनने का हठ अनुराग सम्भव है हमे पंगु बना दे!कि,दूसरे का अनुकरण,फलित हो, जरूरी नही...स्वाभाविक प्रतिभा के मिटने का भीफिर ख़तरा है!हो अपनी स्वभाविकता,साथ हीस्वप्रतिभा के विकास की सोच...बनाती है,अपनी भी पहचान.दूसरे की नकल पेश कर,हम वाहवाही पा लें...परमौलिकता जाती रहेगी...इस तरह सेपाए गए ऐश्वर्य भागते बादल की छाँव की तरह होते हैं...हैं अभी, फिर अगले क्षण नहीं...भागते बादल भागे नहीं कि धूप का आलम छा जायेगा... आत्मविश्वास भी डगमगायेगा.स्वस्वरूप जो ईश्वर ने दिया था, उसे भी गवां देंगे !! स्व सहज व्यक्तित्व को बचानासहज प्रस्तुतिकरण,स्वव्यक्तित्व रक्षण,वास्तविकता के साथ प्रतिभा का अनुसरण यहीहर शख्स के लिए शुभ है कि,ईश्वर ने सबको दिया है --कोई न कोई विशिष्ट गुण हर व्यक्ति होता है,अपने आप मे पूर्ण ! अपने आप मे पूर्ण !!