$ 0 0 कभी देखना समंदरआँखों में...कभी आँखों के आगेसमंदर देखना...बाहर ही बाहरविचरते रहते हैं हम...कभी चलना हो भीतर-भीतर भीदेखें क्या-क्या भेद खोलता है फिर, ये अपने अंदर देखना...सांसों की आवाजाही का संगीतजब थमना है थम जाए...हर क्षण, अपने होने मेंयूँ, न होने का, मंज़र देखना...तट पर उगती हुई संभावनाओं!कुछ तुम्हारी जिजीविषा का भी प्रताप है,सब है विधिगत लेख ना...उगते हुए तुमउदीयमान सूरज के वैभव को प्रतिविम्बित करताविराट समंदर देखना...यूँ देखते-देखते, हो घटित, अपने अंदर देखना... !!