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कि जहाँ पहुंचना था वहां पहुँच चुके होंगे हम... !!

हमारे पास एक दूसरे से कहने को दुनिया भर की बातें होतीं
पर अवकाश नहीं होता...


कभी अवसर होता भी
तो ऐन वक़्त पर सारी बातें गुम हो जाती थीं...


या कही भी जातीं
तो सबसे आवश्यक बात ही अनकही रह जाती थी...


और फिर असीम उद्विग्नता
अगले अवसर का बेतरह इंतज़ार


ये जानते हुए भी
कि फिर वही होगा...


जीवन का ये जोड़ घटाव
वैसे ही पुनः घटित होगा... !


अब जब एक उम्र जी चुके हैं हम...
थोड़ा तो समझते ही हैं क्रम...


सो हमने छोड़ दिया है राह तकना...
मिलेंगे सभी जोड़ घटाव से दूर एक दिन न होगी कोई परिस्थितिजनित प्रवंचना...


कहीं जाने की जल्दी नहीं होगी कि हमें यहीं पहुंचना था...


उस क्षण हम शुरू करेंगे दुनिया भर की बातें एक दूसरे से बांटना...
तब साथ मिल हम महसूसेंगे मौन का बोलना...


कोई जल्दी नहीं होगी...
हमारे पास समय ही समय होगा...


कि जहाँ पहुंचना था वहां पहुँच चुके होंगे हम... !!

शायद... !!!


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