$ 0 0 इंसानों की बस्तीपूरी की पूरी खाली थी...उस जमी हुई भीड़ मेंसब पराये थे...आज वोसब अजनबी थे...कल जिनके अपनेपन परहम भरमाये थे...काँप गया मनजिन आहटों से...देखा तो जानावो अपने ही साये थे...मोड़ आ गयाचलते चलते...बादलबेतहाशा छाये थे...भींगे हुए थे भीतर से आकंठऔर क्या भींगतेउस अनमनी सी बारिश में...इससे पहले की बरसता आकाशहम अपनी छत के नीचेलौट आये थे... !!