दुनिया है...
यूँ ही तो होगी न...
सतही ही होगा अधिकांश तत्व...
जो मिलेंगे वो सब नहीं होने हैं सागर...
स्वभावतः छलकेगा, छलकता ही है गागर...
इस उथले स्वभाव से
कैसी निराशा...
फिर कैसा क्रोध...
उचित है बस मुस्कुरा कर
कर लेना किनारा...
यहाँ तो पल पल चलना है विरोध...
कि...
दुनिया है...
यूँ ही तो होगी न...
लोग हैं...
ऐसे ही तो होंगे न...
समय का फेर है
सब अच्छा ही अच्छा हो, ये दुर्लभ है, आश्चर्य है...
बुराई तो अकड़ी बैठी ही है, इसमें क्या आश्चर्य है... !!