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Channel: अनुशील
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'आज' के सान्निध्य में!

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नदी किनारे बैठ कर
खंगाली अपनी झोली
तो पाया उसमें
बीते कल के सुनहरे अक्षर
'आज' की धुक-धुक चलती सांसें
और संभावित भविष्य!

समेटा फिर सब कुछ
एकटक निहारा मझधार को
धारों की आवाजाही
व नौकाओं की चाल को
और फिर देखते ही देखते
बदल गया परिदृश्य!

अब मैं
बीते कल और आने वाले कल को
बारी-बारी से
धारा को अर्पित करती जा रही थी
सोचा,
रहूँ 'आज' के सान्निध्य में
आखिर कौन लौट सका है अतीत में
अब किसने देखा है भविष्य!

***
पीछे मुड़कर देखा तो आज की ही तारीख़ की पहली पोस्टहै अनुशील पर, दो वर्ष हो गए:)

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