रात में सूरज..., हाँ ऐसा ही होता है यहाँ; कुछ रात दस बजे के आसपास सूर्य की रौशनी से जगमग दृश्य... ऐसी ही होती है स्टॉकहोम में गर्मियों की शामें... जब तक आँख लगती है रात ग्यारह बारह के आसपास तब तक तो रौशनी रहती ही है और जब भी कभी करवट बदले और आँख खुल जाए तीन या फिर चार बजे, तब भी रौशनी होती ही है... जाने कब अन्धकार होता है और कब गायब हो जाता है, पता भी नहीं चलता! आसमान बड़ा सुन्दर लगता है खुली खिड़की से... एक कैनवास सा, जहां कितने ही आकार उकेर रखे हों प्रभु ने...
कहाँ सोचा था कभी
इतनी दूर भी कभी आना होगा
रहना होगा यहाँ
जाननी समझनी होगी यहाँ की भाषा
और महसूसने होंगे यहाँ के मौसम
यहाँ होता है खूब रौशनी से भरा ग्रीष्म
होती है खूब अँधेरी सर्दी की रातें
रौशनी का अतिरेक कभी
और कभी अँधेरे का सर्व व्यापक होना
ताल मेल बिठाते-बिठाते
विस्मृत हो जाता है मन का एकाकी कोना
मन के उस कोने में
भर जाती है धूप
बहुत अँधेरा आने वाला है
विगत वर्षों में अनुभूत हो चुका है वह स्वरुप
इसलिए
कल के लिए ज़रूरी है,
आँखों में ही सही
आज कुछ रौशनी बसाई जाए!
आज
अनुकूल मौसम में,
कल के लिए
कुछ कलियाँ उगाई जाए!!
कहाँ सोचा था कभी
इतनी दूर भी कभी आना होगा
रहना होगा यहाँ
जाननी समझनी होगी यहाँ की भाषा
और महसूसने होंगे यहाँ के मौसम
यहाँ होता है खूब रौशनी से भरा ग्रीष्म
होती है खूब अँधेरी सर्दी की रातें
रौशनी का अतिरेक कभी
और कभी अँधेरे का सर्व व्यापक होना
ताल मेल बिठाते-बिठाते
विस्मृत हो जाता है मन का एकाकी कोना
मन के उस कोने में
भर जाती है धूप
बहुत अँधेरा आने वाला है
विगत वर्षों में अनुभूत हो चुका है वह स्वरुप
इसलिए
कल के लिए ज़रूरी है,
आँखों में ही सही
आज कुछ रौशनी बसाई जाए!
आज
अनुकूल मौसम में,
कल के लिए
कुछ कलियाँ उगाई जाए!!