ठिठका सा है
वातावरण
मेरे शब्द मौन हैं…
चुप चुप से सोच रहे हैं
व्यक्त हो पाये जो शब्दों में
ऐसे भाव गौण हैं…!
तो लिखना क्या…
जो हैं नहीं वो दिखना क्या…
बस
नम आँखों से अभी
आते जाते पलों को
महसूस रहे हैं…
भ्रम चहुँ ओर फैला हो
चीखता हुआ जब झूठ हो
ऐसे में सच के हौसले
खामोश रहे हैं…
समय सत्य को प्रतिस्थापित करेगा ही
सो सत्य निश्चिंत है…
झूठ अपने पैतरे में लिप्त
लगता घड़ी भर को ही जीवंत है…
ये हमारे भीतर
जाने कितना कितना
कौन है...?
व्यक्त हो पाये
जो शब्दों में
ऐसे भाव गौण हैं… … ???