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Channel: अनुशील
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अजाने फ़लक की तलाश में!

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ज़िन्दगी ने
मुझे
अपना कहा...
फिर,
कुछ यूँ हुआ
वो मुझसे रूठ गयी...


अब हर क्षण
गुज़रता है विह्वल
तड़पते हुए...
सागर, अम्बर और
छू कर गुजरने वाली हवा से
उलझनें कहते हुए...


उससे
बात नहीं होती...
मैं अपने साथ हो कर भी
अपने साथ नहीं होती...


व्याकुल मन की
बेचैनियां
मन के फ़लक से कहीं अधिक
विस्तृत हो जाती हैं...
अजाने फ़लक की तलाश में
वही बेचैनियाँ
फिर अनगढ़ कविताओं का
अनछुआ वृत हो जाती हैं...


और मैं
एक विस्मृत बिंदु-
जिसे ज़िन्दगी ने
कभी अपना कहा था...!


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