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Channel: अनुशील
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अनुराग, रौशनी के प्रति!

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उगता है सूरज जिस दिशा में
उधर ही खुलती हैं मेरे घर की खिड़कियाँ
रखा है एक पौधा वहीँ पर
फुरसत में बैठ कर देखती हूँ सूरज की ओर उसका झुकाव
टहनियां बढ़ रही हैं कुछ ऐसे
मानों सूरज ने किरणों का हाथ बढ़ाया हो
और उसे थामने की खातिर
हो गयीं हों वे धनुषाकार
एक तरफ कुछ ज्यादा झुंकी हुई

ये सूरज का साथ मेरे पौधे को जीवन देगा
ये झुकाव उसे समृद्ध करेगा
तेज को कर आत्मसात
पौधा अपने समय से पुष्पित और पल्लवित होगा

बस एक नैसर्गिक अनुराग हो रौशनी के प्रति
तो स्वतः ही जीवन कुसुमित हो जाता है
उज्जवल पक्षों के प्रभाव से
नित सवेरा आता है
एक स्थान पर स्थित पौधों की तरह
चलता फिरता इंसान भी जब
सूरज के तेज का अनुगामी होगा
निश्चित उसके क्रिया-क्लापों का असर
सुखद व दूरगामी होगा

आँखों में एक सूरज लिए जब हर कोई चलेगा...
सुवासित चमन का हर फूल झरने से पहले कहेगा-
अहोभाग्य मेरा, क्यूँ न बिछ जाऊं राहों में
मुझ पर चल कर जाने वाला कल इतिहास रचेगा!

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