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Channel: अनुशील
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आज बस इतना ही...!

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कहीं कुछ भी ठीक नहीं है
अड़चनें हर ओर हैं घेरे खड़ीं
ऐसे में मैं लिखना चाहती हूँ एक आस से परिपूर्ण कविता
अपने अपनों के लिए
अपने लिए...

लेकिन फिर लगता है सब बेमानी है
बादल हैं कि बरसते नहीं केवल आँखों में ही पानी है

आज बस इतना ही...

कि नयन बरस रहे हैं
और इसमें सम्मिलित कई नयनों का पानी है
जो है जहां उसके अपने दुःख, अपनी विवश कहानी है

आज बस इतना ही...

कल अलग अलग करूंगी सब तहें
निकल आए शायद वहीँ से कोई मुस्कान
सहेज लूंगी फिर उसे
अपने लिए...
अपने अपनों के लिए!

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