$ 0 0 यूँ होता है कितनी ही बारकि कहीं भी हो मनआत्मा घुटनों पर बैठीरहती है प्रार्थनारत...ऐसा ही कोई क्षण था...जैसा रहता हैवैसे ही अनमना सा मन था... उम्मीदें उदास थीं...फिर भीआस की कोई किरण पास थी...कि श्रीचरणों में अभी अभीदिया जलाया था...आस्था का एक दीपमन में सजाया था... बाहर खिड़कियों के...फैला आकाश थावो दूर भी था...पर फिर भी पास था वह हमारा मन पढ़ रहा था...?उसके मन में भी शायद कुछ उमड़ घुमड़ रहा था...! तभी मेरी आँखेंबरस पड़ीं...जाने क्या सोचते हुएभावनाएं उमड़ पड़ीं... और फिर क्या देखते हैं-आसमान सब देख रहा है...अपनी धरा के लिए,उजली किरणें भेज रहा है...बर्फ के फ़ाहों से...आच्छादित होने लगी धरा,कुछ जख्म मुस्कुराये...कुछ हो गया फिर से हरा, स्नेह की बारिश नेसब शोक संताप हर लिए...उड़ रहे कुछ सपनेअपने दामन में भी हमने भर लिए... यही उजले कणआज उग आई धूप में चमकेंगे...हीरा हो जायेंगे,मेरी खिड़की सेजल-वायु-आकाश...सभी तत्व प्रवेश पायेंगे और मन में फिरधूप खिलेगी...बाती जो जलायी थी ईश चरणों मेंवह निर्विघ्न जलेगी... जानते हैं,समय गढ़ता ही रहेगा नित नए इम्तहान...मानते हैं,राह आसान नहीं होगी...पर, चलते रहने से एक दूसरे का संबल बने रहने से...राह की कठिनाई कुछ तो कहीं कम होगी...! इंसान हैं हमजीवन भर परीक्षाएंन थमीं हैं... न थमेंगी...हे मित्र! नम आँखें मेरी बस तुमसे इतना ही कहेंगी...मत होना कभी उदासकैसी भी परिस्थिति हो...स्मरण रहे, खुशियाँ तुम्हें तुम्हारे भीतर ही मिलेंगी...और उन्हें थाह करजब तुम मुस्कुराओगेआनंद का अप्रतिम संसारअपने पास ही पाओगेऔर इस प्रक्रिया में...अनायास ही मेरे लिएधूप... किरण... दिनमान...मेरा पूरा आसमान...सब अपनी एक ही मुस्कान से रच जाओगे...!!!