$ 0 0 पराश्रित होना हीदुःख है किखुशियाँपराश्रित नहीं होतींवे हृदय की निधि हैं वहीं सन्निहित भी बाहरी किसी अवलंब परटिका नहींख़ुशी का तारतम्य जो मन से होफिर कारवाँ कहीं रुका नहीं वगरनाजीवन बीत जाता हैदुःख जीत जाता है ख़ुशियों से हमऔर हमसे ख़ुशियाँ अछूती रह जातीं है किवे स्वभावतःअनचिन्हे कोणों से प्रकाश-सम आती हैं