$ 0 0 मौन की महिमाअपार हैजो यह भाषा आत्मसात कर ली जाएतो कहती भी हैसुनी भी जाती है अपने सबसे प्रभावी रूप में!मगरवाचालता के हम इतने आदी हैंकि मौन की परिधि तकपहुँच ही नहीं पाते किउस देहरी तक पहुँचने कीअपनी नैतिक साँकल्पिक अहर्ताएँ हैं।