Quantcast
Channel: अनुशील
Viewing all articles
Browse latest Browse all 670

उस भविष्य तक...!

$
0
0
मन के पृष्ठों से
कागज़ तक आते आते,
कितना कुछ है... जो छूट जाता है...
शब्दों की ऊँगली थामते ही
सादा सा कोई सच,
सदा के लिए रूठ जाता है...

कांच से रिश्तों पर
जब बेरहम हवा की मार पड़ती है,
तो बचा-खुचा संतुलन टूट जाता है...
आजमाती है लगातार ज़िन्दगी
धर-धर रोज़ नए रूप,
किनारे तक आते ही समंदर छूट जाता है...

क्या खोजेंगे क्या पायेंगे खोये हुए लोग
नज़र के सामने ही,
संभावनाओं का घड़ा फूट जाता है...
यहाँ हम निराश होते हैं
और वहाँ रौशनी हो जाती है कुछ कम,
फ़लक पर सितारा कोई रूठ जाता है...

आस की सुनहरी किरण
नज़र से ओझल न होनी चाहिए कभी,
निराश दौर लौ की उर्जा लूट जाता है...
'वर्तमान' भलेतबाहहोजाए विध्वंसात्मकउथल-पुथलमें
पर 'भविष्य' तबभीसदाबचा रहेगा,
प्रलयी मंज़र
'अतीत' के पृष्ठों में ही कहीं छूट जाता है...

उस भविष्य तक जायेंगे हम
मौन धरे, अपने बल-बूते
टूटता है, टूटने दो,कांच टूट जाता है...
शब्दों की ऊँगली थामते ही
सादा सा कोई सच,
सदा के लिए रूठ जाता है!

Viewing all articles
Browse latest Browse all 670


<script src="https://jsc.adskeeper.com/r/s/rssing.com.1596347.js" async> </script>