मन में निरंतर चल रही एक प्रार्थना के कुछ अंश यूँ लिख गए... सो बस सहेज ले रहे हैं यहाँ...!
एकछेद भर रौशनी भीतर आती रहे
और ढूंढ़ ले खोया हुआ उत्साह
वोउत्साह
जो चूक गया है
बीतते उम्र के साथ शायदकहीं दुबक गया है
बहुत देर तक यूँ दुबका रहा तो
हो जाएगा विनष्ट
और फिर नहीं उग पायेगा विश्वास
कभी भी...,
एक ज़रा से उत्साह के अभाव में
अँधेरीबंद कोठरी के
एक अकेले छिद्र पर ही मेरी आस टिकी है;
प्रविष्ट करे रौशनी
और खोज निकाले खो चुके उत्साह को
पाए जाने के तुरंत बाद
धूल झाड़कर
खड़ी हो जाए उमंग
झूमे मन
और फिर से शुरू हो जीवन...!
एकछेद भर रौशनी भीतर आती रहे
और ढूंढ़ ले खोया हुआ उत्साह
वोउत्साह
जो चूक गया है
बीतते उम्र के साथ शायदकहीं दुबक गया है
बहुत देर तक यूँ दुबका रहा तो
हो जाएगा विनष्ट
और फिर नहीं उग पायेगा विश्वास
कभी भी...,
एक ज़रा से उत्साह के अभाव में
अँधेरीबंद कोठरी के
एक अकेले छिद्र पर ही मेरी आस टिकी है;
प्रविष्ट करे रौशनी
और खोज निकाले खो चुके उत्साह को
पाए जाने के तुरंत बाद
धूल झाड़कर
खड़ी हो जाए उमंग
झूमे मन
और फिर से शुरू हो जीवन...!