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Channel: अनुशील
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जिजीविषा के तीरे, उगता रहे सुकून... !!

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अक्षर अक्षर हो सुकून
जैसे स्वर लहरियों में तैरता राम धुन...


अपनी दिशा पा जायेगा
मन, सुन कभी अपनी भी आवाज़ सुन... 


नहीं ज़ख्मी होंगे पाँव
कुछ दूर के कांटे तो तू ले चुन... 


यहाँ के अजब हैं तौर तरीके
दुनिया है, खुशियाँ यहाँ न्यून...



आँखों में जो झिलमिल बूंदें हैं
उनसे ही कोई प्रकाशवृत्त बुन...


कैसा भी भयावह हो दृश्य
कभी शेष न होने पाए जीवन धुन... 


जिजीविषा के तीरे, उगता रहे सुकून... !!




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