$ 0 0 सुनो...सर्दी के मौसम के लिएभारी-भरकम कपड़ों के साथकुछ रौशनी भी निकाल लेना...सहेजी है न... ???बीते दिनों आँखों भर भर सूरज था...आधी रात के सूरज का कैसा अद्भुत गौरव था...सब सहेज रखा है न ???इस मौसम के लिए--जब बादलों से पटा अम्बर है...रिमझिम जाड़े की बारिश है...भींगी हुई वसुंधरा है...जीवन सचेत ठिठका खड़ा है...कि उसनेअभी-अभी विदा किया हैसूखे पत्तों को...अभी अभी बीता है मुरझाना उपवन का,गमले से अलग होते देखा हैअभी-अभी फूलों को...सिमटे हुए अंधेरों मेंदीप जलाती है कविता...धीरे-धीरे बात सहजदोहराती है कविता--सुनो,ज़रा सी रौशनी भीनिकाल लेना...भींगा-भींगा मन भी है,बाती एक भावों में भिंगो कर जला लेना... !!