अपना ही मन पढ़ने के लिए
लिखते हैं हम...
खुद को समझने के लिए!
जब फिसल जाती है सकल रेत मुट्ठी से...
तब भी
कुछ एक रज कणों को
अपना कहने के लिए,
लिखते हैं हम...
दो सांसों के बीच का अंतराल जीने के लिए!
जब-जब मिलता है बाहें फैलाये जीवन...
तब-तब
उसके हर अंश को समेट
वापस आसपास बिखरा देने के लिए,
लिखते हैं हम...
खाद से ख़ुशबू लेकर लुटा देने के लिए!
जब भी होता है आसमान उदास...
तब उसमें
अपनी कल्पना से
अनगिन बादल बना देने के लिए,
लिखते हैं हम...
हवाओं का आँचल सोंधी महक से भींगा देने के लिए!
चुप सी कलम की स्याही जांचने के लिए
लिखते हैं हम...
अपने ही भीतर झांकने के लिए!
लिखते हैं हम...
खुद को समझने के लिए!
जब फिसल जाती है सकल रेत मुट्ठी से...
तब भी
कुछ एक रज कणों को
अपना कहने के लिए,
लिखते हैं हम...
दो सांसों के बीच का अंतराल जीने के लिए!
जब-जब मिलता है बाहें फैलाये जीवन...
तब-तब
उसके हर अंश को समेट
वापस आसपास बिखरा देने के लिए,
लिखते हैं हम...
खाद से ख़ुशबू लेकर लुटा देने के लिए!
जब भी होता है आसमान उदास...
तब उसमें
अपनी कल्पना से
अनगिन बादल बना देने के लिए,
लिखते हैं हम...
हवाओं का आँचल सोंधी महक से भींगा देने के लिए!
चुप सी कलम की स्याही जांचने के लिए
लिखते हैं हम...
अपने ही भीतर झांकने के लिए!