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लिखना आश्वस्ति है!

कुछ तो बात होगी
कि अपनी बेचैनियों का हल
हम कविताओं में जीते हैं
घूँट-घूँट
आँसू
आँखों से रीते हैं!    


लिख लेना
कितनी ही बार
अपने आप में ही हल होता है
कई बार हम
लिखते हुए
अंधकार से जीते हैं!


चलते हुए
समाधान
राहों में उग आते हैं
चलती कलम की
स्याही से हम
अपना बिखरा मन सीते है!


एक भाषा है
जिसमें हम ख़ुद से बात करते है
उसकी लिपि बताती है
हम
कितना बचे हैं
और कितना बीते हैं!


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