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आह

डूबता रहा मन
भींगता रहा मन
हर बार
बार-बार
ज़िन्दगी की थाह में!


यूँ ही
उठते-गिरते चलते रहे हम
कभी मुस्कान लिए आँखों में
कभी लिए हुए आँखें नम
पथरीली जीवन राह में!


रिश्ते
और रास्तों के
सारे समीकरण
सिमट आये
अपनी एक कराह में!


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