मेरी एक बड़ी प्यारी दोस्तहै... बहुत दूर हैं हम अभी जमशेदपुर से... वहीँ तो हमने साझा कितना कुछ जिया है स्कूल के दिनों में, और फिर कुछ एक वर्ष बनारस में भी बी.एच.यू वाले दिनों में; अंतिम मिले होंगे बी.एच.यू के त्रिवेणी हॉस्टल में ही कभी फिर तो जगह ही बदल गयी... और अब न जाने कब प्रत्यक्ष मिलाये ज़िन्दगी...! लेकिन, संतोष है कि बात होती रहती है... व्यस्तताओं के मध्य कुछ वक़्त यहाँ-वहाँ इधर-उधर की बातों के बीच कुछ एक बातें कविता भी बन जाती हैं...
कहते-कहते जब श्वेताने 'खुद के समीप और दुविधाओं से दूर' होने की दुर्लभ सम्भावना वाली बात कही तो मेरे मन से भी अनायास निकल पड़ा... काश!
फिर इस सम्भावना ने... इस सम्भावना को साकार कर सकने की सक्षमता के अभाव ने... इस पंक्ति के आसपास उमड़-घुमड़ रही कविता ने..., जैसे मेरा हाथ थाम कर ये 'बेवजह' सा कुछ लिखवा दिया...!
खुद के समीप
और दुविधाओं से दूर-
है ऐसा भला क्या कोई स्थल
इस जहान में?
जहां संभव हो सके
इस स्थिति की अनुभूति...
अगर है कहीं, तो
हमें एक बार
जाना है वहाँ...
उन्मुक्त
मुस्कुराता
जीवन है जहाँ...
महसूस करनी है
वो शांति...
जो अपने निकट होने से
सृजित होती है,
चिंतन-मनन-प्रण
सब चल रहा है...
देखें, कब ये दुर्लभ बात
घटित होती है!
कहते-कहते जब श्वेताने 'खुद के समीप और दुविधाओं से दूर' होने की दुर्लभ सम्भावना वाली बात कही तो मेरे मन से भी अनायास निकल पड़ा... काश!
फिर इस सम्भावना ने... इस सम्भावना को साकार कर सकने की सक्षमता के अभाव ने... इस पंक्ति के आसपास उमड़-घुमड़ रही कविता ने..., जैसे मेरा हाथ थाम कर ये 'बेवजह' सा कुछ लिखवा दिया...!
खुद के समीप
और दुविधाओं से दूर-
है ऐसा भला क्या कोई स्थल
इस जहान में?
जहां संभव हो सके
इस स्थिति की अनुभूति...
अगर है कहीं, तो
हमें एक बार
जाना है वहाँ...
उन्मुक्त
मुस्कुराता
जीवन है जहाँ...
महसूस करनी है
वो शांति...
जो अपने निकट होने से
सृजित होती है,
चिंतन-मनन-प्रण
सब चल रहा है...
देखें, कब ये दुर्लभ बात
घटित होती है!